स्त्री और पुरुष

सादर नमस्कार ,
समाज में पितृ सत्ता याने पिता पर परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी याने ज्यादा भार ।
समाज, स्त्री और पुरुष दोनों से मिलकर बना है । दोनों में से किसी एक की अनुपस्थिति से समाज का अस्तित्व नहीं होगा । पर नेतृत्व के शीर्ष पर कोई एक होगा ।
नेतृत्व कर्ता के हिस्से में सुख और दुःख ,अधिकार और कर्तव्य , कठोरता और कोमलता ,भावनाओं पर नियंत्रण , निर्णय लेने की क्षमता , साहस , त्याग ,जोखिम उठाने की जिम्मेदारी अधिक होती है ।
लंबे समय तक नेतृत्व की डोर किसी एक हाथ में होती है तो उसमें अहंकार उतपन्न हो जाता है अपने कर्तव्य से परे अपने आप को सर्वश्रेष्ठ और दूसरे को तुच्छ समझने लगता है ।
यही बात भारतीय समाज में भी दृष्टिगोचर होने लगा ।कालांतर से पितृसत्ता होने से पुरुष में श्रेष्ठता का भाव बढ़ गया और पुरूष वर्ग स्त्री जाति को दूसरे स्तर का मानने लगे । इसी सोंच से बहुत सी स्त्रियां क्रूरता का शिकार हुई ।
पुरुषों में ये भावना घर कर गयी कि फलाना फलाना काम स्त्रियां नहीं कर सकती । लंबे समय तक आधीन रहने से धीरेधीरे स्त्रियां भी जाने अनजाने स्वीकारने लगी कि ज्यादा जोखिम भरा काम करना उनके बस की बात नहीं । अपने आप को पुरुष से कमतर आंकने लगी और यहीं से
स्त्री-पुरुष का द्वंद शुरू हो गया ।
अब सोंच में फिर से परिवर्तन हो रहा है । भले ही परिवार के शीर्ष पर पिता हो किंतु माता की भूमिका पिता के समान महत्वपूर्ण है । परिवार माता और पिता दोनों से चलता है ।
अब वे सभी क्षेत्र जहाँ स्त्रियों का कार्य करना वर्जित था, कारण चाहे जो भी हो । उन सभी क्षेत्रों में स्त्रियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं । युद्ध के मैदान में या अंतरिक्ष की उड़ान में घर और बाहर दोनों जगह बखूबी अपना हुनर दिखा रही हैं ।
अब पुरुषों की बारी है अपनी सोंच बदलने की । घर के काम में समान रूप से हाथ बटाने की । घर की जिम्मेदारी दोनों की साथ निभाने की ।
शुभ दोपहरी ।l
वर्षा ठाकुर ,
प्राचार्य ,शा उ.मा. विद्यालय जुनवानी भिलाई ।
छत्तीसगढ़ ।

दीप जलाएँ

#दीप_जलाएं
आओ मिलकर दीप जलाएँ
भीतर का अंधियारा भगाएं
अखण्ड एकता का संदेश दे
आशा की एक किरण जगाएं ।

विश्वास का एक दीप जलाएं
घोर अंधकार पर विजय पाएं
अपने पराये का भेद भूलकर
निर्मल प्रेम का एक दीप जलाएं ।

विश्व पटल पर मिसाल बनें हम
सदभावना का संचार करें हम
घर में रहकर युद्ध करें सब
महामारी पर विजय पाएं हम ।

आओ मिलकर दीप जलाएं ।
चहूँ ओर प्रकाश फैलाएं ।
एक बने नेक बने हम
तम को हर , प्रकाश फैलाएं ।

आओ मिलकर दीप जलाएं —–

घर में घर के लिए घर पर
घरवालों के साथ घर पर
और घर पर खुशी-खुशी रहिए ।
स्वस्थ्य रहिए मस्त रहिए ।
#एक दीप जलाएं
प्रकाश फैलाएं ।

लॉक डाउन को सफल बनाइए ।
जयहिंद ।

वर्षा की कलम से ——
वर्षा ठाकुर ,
भिलाई ,छत्तीसगढ़ ।

एक कप चाय

#एक_कप_चाय

केटली देख खुशी अपार हो जाए ,
जो गरमा गरम एक कप चाय मिल जाए ।

नींद खुलते ही ख़ुमारी भाग जाए ,
जो गरमा गरम एक कप चाय मिल जाए ।

फाइलों के ढ़ेर में ,चुटकी में काम निपट जाए ,
जो गरमा गरम एक कप चाय मिल जाए ।

दफ़्तर से आते ही थकान भग जाए ,
जो गरमा गरम एक कप चाय मिल जाए ।

रिश्तेदार के घर मान बढ़ जाए ,
जो गरमा गरम एक कप चाय मिल जाए ।

दोस्तों के बीच मिठास बढ़ जाए ,
जो गरमा गरम एक कप चाय मिल जाए ।

उलझन खास ,झट से सुलझ जाए ,
जो गरमा गरम एक कप चाय मिल जाए ।

शाम होते ही सुहानी हो जाए ,
जो गरमा गरम एक कप चाय मिल जाए ।

साहित्य की महफ़िल सज जाए ,
जो गरमा गरम एक कप चाय मिल जाए ।

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श्रीमती वर्षा ठाकुर ,
भिलाई ,छत्तीसगढ़ ।

छत्तीसगढ़ की खास भाजी – चेच

आज मिलिए छत्तीसगढ़ की एक खास भाजी से —
ये है छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध भाजियों में से एक ।इसकी खास विशेषता है ,पकाने के बाद इसकी पत्तियों को गिनना चाहे तो एक एक पत्तियों को गिन सकते हैं । आप जान सकते है ,आपकी थाली में दूसरे से कितना ज्यादा या कम है । अंको में बता सकते है । परोसने वाले से शिकायत भी कर सकते हैं ,मुझे कम दिए हो या फिर इतरा भी सकते है ज्यादा मिलने पर । यह लाल और सफेद दोनों रंग का होता है । इसका छोटा सा नाम है केवल दो अक्षर का ,दोनों ही एक वर्ण ।इसको बनाने का तरीका भी कुछ अलग । इसे तोड़ने या काटने के लिए चाकू या हसिए की जरूरत नही है।हाथ का ही उपयोग करना है ।ध्यान रहे इसे इसकी डंडी सहित ही तोडना है ,तभी ये स्वादिष्ट लगेगा । इसे बनाने के लिए पारम्परिक तरीके से हटकर कुछ नया ढंग अपनाये ,तो बस समझ लीजिए सब मटियामेट । सास ,या पति के ताने सुनना तय है ।

जुन्ना_गोठ_बात

#जुन्ना_गोठ_बात —

जब ले पेपर वाले मन तापमान ल डिग्री में बताय लगे हे ,तब ले घाम अड़बड़ जियांथे।अब तो मोबाईल ह अउ अति करत हे जब मोबाईल खोलबे ,घेरी बेरी तापमान ल बताथे ।त अउ घाम जियांथे ।घर ले निकले के मन नई लगय।दुवारी में घलो घाम अड़बड़ जियांथे ।
पहली तापमान से कोनो मतलब नई रहय ।तापमान कम रहय या जादा ,।जेन करना है तेन करन ।कोनो रोक टोक नई रहय ।गरमी के छुट्टी ,मतलब पूरा छुट्टी ,कोई होमवर्क नई ,पढ़े लिखे के कोई झंझट नई ।
लइका रेहेन तो मंझनिया होय के बड़ इंतजार करन ।भरे मंझनिया सबे भाई बहिनी , अउ मोहल्ला भर के संगवारी जेती मन लगय ,गिंजरन ।नवा नवा रस्ता ,नवा नवा खेल खोजन ,खेल के समान खुदे बनावन ।होत मंझनिया कुआँ पार मेर जान अउ अड़बड़ गंगा अमली खान ।कोहा मार मार के गंगा अमली तोड़न ,पाके पाके ल खान कच्चा ल कुडोह दन । कभू कभू कोहा,कोनो ल पड़ जाय तो गारी खाय लगय ।तह ले झगरा होजान ,कोहा फेकय तेन ल खिसियावन ,देख के नई फेकस ,- मैं तोड़थव ,सबे खाथव, ऊपर ले खिसियाथव ,ज काली ले नई तोड़व् । ेगंगा अमली खाय के बाद ओखर बीजा ल छिले के कम्पिटिसन होय । गंगा अमली के बीजा में तीन परत होथे ,ऊपर करिया, ओखर नीचे भूरवा , सबले नीचे सफेद ।करिया परत ल छिले बर रहय ,बिना सफेद तक पहुचे ,फेर कोनोच नई छील पान ।कोनो न कोनो मेर सफेद हो जाय ।
कोनो दिन आमा बगीचा जान ।अड़बड़ आमा खान ।सबे पेड़ ल चीनहन ,कोन खट्टा ए ,कोन मीठ। कोन लगड़ा ए ,कोन कलमी ,तो तोतापरी ,अथान के आमा ए । रखवार ह देख डरय तो सबे झन बगर जान ।रखवार हक खा जाय । अमली तोड़ तोड़ के लाटा भी बनान ,अउ चाट चाट के खान । बोइर के पापड़ी भी खान । कभू कभू ननदिया तीर चल दन ।बेशरम के डंडी ल तोड़ तोड़ के डंडा छुवुल खेलन । भरे मंझनिया रकम रकम के खेल खेलन ,फेर घाम कभू नई जियानिस ।
बचपन के मजा अब कहाँ ,खेल खेल में अड़बड़ अकन बात सीख जान ,बिना कोई स्कूल ,बिना कोई मास्टर के ।

#प्रकृति_तेरे_रंग_अनेक

#प्रकृति_तेरे_रंग_अनेक —
अभी थोड़ी देर पहले अचानक बरसात शुरू हो गयी । बड़ी बड़ी बूदों की आवाज़ सुनकर हमने कौतुहल वश किवाड़ खोला , बाहर का नजारा देखने तो ये क्या बारिश की बड़ी बूंदों के साथ साथ ओले भी बरस रहे हैं ।हम आवक आश्चर्यचकित देखते रहे । देखते देखते थोड़ी ही देर में पूरी धरती ओलों से पट गयी । सामने का खाली प्लाट तो किसी ठंडे पहाड़ी स्थल का अनुभव कराने लगा । हमने इस खूबसूरत नजारे की तस्वीर लेना चाहा ।भीतर गए झट से मोबाईल लेकर आये दरवाजा खोले सड़क की ओर बढ़े वैसे ही तेज हवा ने हमे डरा दिया और बारिश ने भिगा दिया ।फिर भी हम हार नहीं माने ।हमारी कोशिश जारी रही । हमारी बेटी ने भी साथ दिया ।हमारे दुस्साहस को बढ़ावा देते हुए खूंटी में टँगी हुई छतरी लेकर दे दिया । छतरी देख हम बहुत खुश हुए ।छतरी ओढे फिर से फ़ोटो खींचने की कोशिश में लग गए । अबकी हवा और भी उग्र हो गया था ,ज्यों ही छतरी लेकर आगे बढ़े तुरन्त छतरी पलट गयी । बड़ी नाज़ुक । अब हमें अपने साथ-साथ छतरी को भी सम्हालना पड़ा । तेज बारिश ,आंधी-तूफान ऊपर से बड़े बड़े ओलों की बरसात फिर हम उल्टे पांव घर की ओर भागे । जैसे तैसे आखिर बालकनी से फ़ोटो खींच लिए और खुश हुए ।
शायद मौसम को हमारे ऊपर तरस आया थोड़ी देर में बारिश कम हो गयी । फिर हम मिशन में लग गए मोबाईल लेकर । रोड पार किए फिर बड़ी नाली लांघा अंततः ओलों की तस्वीर ले लिए ।
ओले बड़े ही खूबसूरत अलग अलग आकार में कोई बड़ा कोई छोटा कोई गोल कोई आधा कटा हुआ । वैसे ऐसा खूबसूरत नज़ारा हमने अपने जीवन में पहली बार देखा है ।
इस खूबसूरत नजारे का एक दूसरा पहलू भी दिखा । एक नन्हीं चिड़िया बालकनी के ग्रिल में दुबकी सहमी बैठी थी । मैं और मेरे बच्चे चाहते थे कि वह भीतर आ जाये परन्तु कैसे ? नन्हीं सी जान कैसे सह रही होगी भयंकर आंधी तूफान ।
एक और बड़ा नुकसान हुआ । हमारे गमलों के फूल पौधे भी आँधी तूफान के सामने टिक नहीं पाये । कुछ फूल और डालियाँ डटकर मुकाबला करते हुए टूट कर गिर गए ।
सुखद और दुःखद , अच्छा और बुरा एहसास दोनों एक साथ हुआ ।
अभी ओलों की बारिश ,आँधी तूफान थम गया है । परंतु घने काले कजरारे बादल अभी भी आसमान को घेरे डरा रहें है ।

माँ

बोलती तस्वीर -६४

तिथि -२०-०८-२०१८

वार – सोमवार 

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माँ 
बड़े सबेरे उठ जाती माँ ,

सबके भोजन की तैयारी में, जुट जाती माँ ।
जंगल जाती ,लकड़ी लाती ,

भरी दोपहरी उपले  बनाती ।
चूल्हा सुन्दर ,खूब जलाती ,

जलती अंगीठी पर तवा चढ़ाती ।
बड़े-बड़े गोल-गोल ,रोटी बनाती ।

संग गरम-गरम भात पकाती ।
ठंडी हो या गर्मी या हो घनघोर बरसात ,

चेहरे में कोई शिकन न आती ।
नित नियम से सुबह-शाम ,

 स्वादिष्ट भोजन पकाती ।
प्रेम से सबको खिलाती ,

अंत में स्वयं खाती ।
दिन-रात करती काम ,

फिर भी कोई #वेतन न पाती माँ।
श्रीमती वर्षा ठाकुर ,

भिलाई , छत्तीसगढ़ ।

एक निर्णय 

लघु कथा 

* एक निर्णय  *

अजय पेशे से एक शिक्षक है । कुछ ही दिनों पूर्व एक सम्पन्न परिवार में उसका ब्याह तय हुआ है  ।

आज शाम अजय विद्यालय से लौटकर   पुस्तकों में उलझा हुआ था ।अचानक उसके कमरे में पिताजी और बड़े भैय्या के साथ उसके होने वाले ससुर  प्रवेश किए । अजय ने सबको प्रणाम किया । थोड़ी देर बाद कमरे में चारों तरफ नज़र दौड़ाते हुए होने वाले ससुर जी ने कहा ए सी लगाने के लिए ये दीवार ठीक होगा ,इस दीवार पर एल ई डी यहाँ अलमीरा,ड्रेसिंग टेबल —– दीवार पर इस रंग का  पेंट —- कमरे का पूरा साज-सज्जा तय कर पुनः ड्राइंग रूम में आ गए –  गहने ,कपड़े  ,मिठाई , फ़्रिज ,वाशिंग मशीन —आदि आदि का ब्रांड बताते हुए अजय की तरफ मुखातिब होते हुए बोले – बेटा फलाने ब्रांड का कार दूँगा , बस आप अपनी पसन्द का रंग बता देते तो लेने में सुविधा होगी । 

होने वाले ससुर के  हर बात से अजय के स्वाभिमान को बड़ा ठेस पहुँच रहा था ।उसे लग रहा था उसकी खुद्दारी पर कोई हथौड़ा चला रहा हो । अब तो उसके बर्दाश्त से बाहर हो गया उसने एक कठोर निर्णय लिया और दो टूक कहा -आदरणीय मुझे ए सी , टी वी ,कार  लाने वाली दुल्हन नहीं चाहिए ,मुझे मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाली पत्नी चाहिए । मेहनत की कमाई से मिलने वाली नून खिचड़ी में खुश रहने वाली सहधर्मिणी चाहिए ।

दामाद खरीदने वाला ससुराल नही चाहिए ।

श्रीमती वर्षा ठाकुर ,

भिलाई ,छत्तीसगढ़ ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

दुर्ग की पहचान – चंडी मन्दिर 

दो तीन दिन पूर्व किसी काम से हम लोग दुर्ग गए थे ।मैनें कहा -दुर्ग आये हैं तो चंडी मां का दर्शन करते चले ।पति सहमत हो गए । हम मां चंडी के दर्शन करने मन्दिर पहुँच गए । 

वैसे तो मैं इसके पहले कई बार इस मंदिर में आ चुकी हूं , देवी माँ के दर्शनार्थ ।परन्तु इस बार बिल्कुल नयी अनुभूति हुई । नयी जानकारी मिली । आप लोगों से साझा कर रही हूं।

मन्दिर का जीर्णोद्धार चल रहा है ,मन्दिर का तोरनद्वार बहुत भव्य है ।सुन्दर नक्काशीदार स्तम्भ है । मन्दिर का सभामण्डप पार कर गर्भ गृह में पहुँचे । वहाँ पुजारी जी साफ सफाई में लगे थे ।लगभग उनका कार्य पूर्णता की ओर था । हमने मां को प्रणाम किया और परिक्रमा करने लगे ।परिक्रमा पूर्ण करते तक पुजारी जी का भी कार्य पूर्ण हो चुका था । पंडित जी चरणामृत और प्रसाद देने आए । आदतन जिज्ञासावश मैने पूछना शुरू कर दिया ।मन्दिर के गर्भगृह में बहुत सारी मूर्तियां है । तीन मूर्ति नीचे उसके ऊपर एक बड़ी मूर्ति  उससे ऊपर सबसे पीछे कालीमाता की प्रतिमा है । आजू बाजू में एक ओर शिव जी की प्रतिमा है । एक तरफ मुझे ध्यान नही आ रहा है ।

मैं उलझन में थी कि चंडी मां की प्रतिमा कौन सी है ,अतएव पंडित जी से  पूछने लगी ।वैसे तो पिछले 24 सालों से अक्सर नवरात्रि के समय यहां आती रही हूं । तब बहुत भीड़ रहता है ,मुश्किल से एक झलक ही दिखता है ,प्रणाम करती और तुरन्त हटना पड़ता है ।ऊपर से माता भक्तजनों ,श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाए गए फूल पत्तियों से ढकी रहती  सो बहुत अच्छे से दिखाई नही देता ,केवल एक झलक देखकर ही सन्तुष्ट होना पड़ता है । इस बार  हमारे अलावा कोई और नहीं था । जल्दबाजी की आवश्यकता नही थी ,मनभर देखने का अवसर अतः ध्यान से सभी प्रतिमाओं को देख रही थी ।मेरे लिए ये तय करना मुश्किल हो रहा था कि मां चंडी की मुख्य प्रतिमा कौन सी है । बस इतना जानती थी कि माता स्वयंभू है ।
;पंडित जी से मैंने पूछा -मुख्य प्रतिमा कौन सी है । पंडित जी ने कुंड की ओर इशारा किया ।मुझे समझ नही आया मैने फिर से पूछा ये किनकी प्रतिमा है ।पंडित जी ने बताया ऊपर दुर्गा माँ , नीचे दुर्गा ,पार्वती और गणेश जी है । फिर मैंने पूछा -चंडी मां कहाँ है , &n;फिर दोनों मूर्तियों के बीच के  कुंड की ओर इशारा किए , मैं कुंड में ध्यान से देखी ,कुंड में मुझे नीला नीला जल ही दिखाई दिया ,मैने सोचा मां कुंड में होगी ,शायद जल के कारण नही दिख रही है ,मैने कहा माँ कुंड के अंदर है क्या ,? पंडित जी ने कहा -यही कुंड ही चंडी माता है ,यहाँ मां कुण्डीय स्वरूप में है । मैं सुनकर आश्चर्य चकित रह गयी ।माता की महिमा अपरंपार है ,अलग अलग जगहों में अलग अलग स्वरूप में विराजमान है ।कुंड दिल के आकार में है , जल से परिपूर्ण है ।पंडित जी ने बताया कि इस कुंड में सदैव इतना ही जल भरा रहता है । इससे घटता -बढ़ता नही है ।यह कुंड प्राकृतिक है ।

यह मंदिर बहुत पुराना है ,लगभग 300-400 साल पुराना है । पहले मन्दिर बहुत छोटा सा था ।वास्तव में यह एक अति प्राचीन दुर्ग (किला) है ।जिसके भीतर यह मंदिर है ।इसे किसने बनाया था ,ये जानकारी पंडित जी को नही था ।ये जरूर बताया कि डेरहा नाम के दानदाता की यह जगह है ,जिसे दान स्वरूप उसने दिया था । मेरे सवालों से पंडित जी थोड़े परेशान से हो रहे थे ,सम्भवतः उन्हें मन्दिर के इतिहास के सम्बंध में ज्यादा जानकारी नही है । आगे मैने कोई सवाल नही किया । कोई बुजुर्ग अनुभवी ही सही जानकारी दे पाएंगे ।
वैसे यह मंदिर शोध का अच्छा विषय है ।अपने अंदर ;दुर्ग के इतिहास को सँजोए हुए है । शोध से कई परते सामने आ सकती है ।

यदि आप में से किसी को इस सम्बंध में जानकारी हो तो कृपया साझा कीजिए । मुझे भी कुछ और पता चलेगा तो ;जरूर साझा करुँगी ।

शुभ -रात्रि ।

    ” सुख विश्वास और मेहनत  में है “

यही कोई 11बज रहा था । मैं रसोईघर में थी ,एक आवाज सुनायी दिया ।मैंने पति से पूछा कौन है ?—बोले झाड़ू बेचने वाले हैं।मुझे झाड़ू लेना नही था फिर भी दरवाजे पर चली गयी ।झाड़ू वाले को देखने ।सामने देखी दो बुजुर्ग सिर पर झाड़ू की गठरी लादे हुए है ।मुझे देखकर उनके चेहरे में चमक आ गयी ,खुशी झलकने लगी ।उन्हें लगा कोई खरीदार मिल गया ।–मुझे खरीदना नही था फिर भी आदतवश मैंने भाव पूछ लिया ।झाड़ू छिंन का था ,बढ़िया गूथा हुआ और लम्बा ।आमतौर पर हमारे यहाँ मिलने वाला छिंन झाड़ू इतना गूथा हुआ नहीं होता ,न ही लम्बा होता है ।बुजुर्ग ने कीमत बताया- 60रुपये जोड़ी ।

एकदम बढ़िया बहरी हे ।इहा के नोहै ।

मैंने ने कहा -तोर बहरी सुन्दर हे ।फेर हमन एमा नई बाहरन ।तबतक उसकी पत्नी आ गयी । उसने तपाक से कहा -ले कम कर देबो 50 रुपया जोड़ी म् ले ले ।अड़बड़ दूरहिया ले लाने हन ।

उन लोगों की उम्र और मेहनत देखकर मुझे थोड़ी दया आ गयी ।यद्यपि घर में छीन झाड़ू का उपयोग नही होता तथापि मैने एक जोड़ी खरीद लेने का सोचा ।वैसे भी पचास रुपये का ही तो है ।

मैने कहा-ले एक जोड़ी दे दे ।मेरा इतना कहना था कि दोनों के चेहरे की चमक बहुत बढ़ गयी ।संतोष दिखने लगा ,चलो कुछ तो बिक्री हुई ।

बुजुर्ग सिर से गठरी उतारकर उसमें स एक जोड़ी छाठ कर निकाला और दिया ।

मैंने बहरी को अलट-पलट कर देखा ,और जैसा कि हमारा स्वभाव है कि एकाएक हम समान की गुणवत्ता को स्वीकार नहीं करते पसन्द का अवसर हो तो दो-चार को जरूर देखते है ।मैंने कहा-ये दे बने नई हे, दूसर दे ।बुजुर्ग तुरन्त बोले ये ले छाट ले बेटी सबे एके बरोबर हे ,मैं एक दो बहरी को देखी ,सब एक जैसे ही लगे ,मन में सोची #यही ल कइथे #आँखी नाचथे# एक बहरी अलग की और घर के भीतर चली गई ।पैसे लेकर लौटी ,पैसे देते हुए ,जैसा कि मेरी आदत है मैंने बातचीत शुरू कर दिया ।मैंने पूछा-कहाँ रहिथो ?

बुजुर्ग-महासमुंद ।

मुझे आश्चर्य हुआ ।महासमुंद से यहाँ !!!मेरे चेहरे के भाव से उन्हें समझ आ गया ।मेरे पूछने से पहले बताने लगे ।

ये बहरी इहा के नोहय ।उड़ीसा ले लाने हन ।रइपुर टेशन में उतरने उहा बेचेन फेर ए कोती आगेंन ।

महासमुंद में नई बेचावय का ।

बुजुर्ग -उहो बेचथन । इहा टेशन में रुके हन ।थोड़कन बेच लेबो ,तहा ले जाबो।

के झन नोनी बाबू हे ।

बुजुर्ग -एक झन बेटी हे ।दू झन नाती हे ।बेटी दामाद घलो बेचथे ।

बताते-बताते बुजुर्गों के चेहरे में थोड़ा दर्द झलकने लगा ,आँखें डबडबा आयी,फिर कहने लगे ।दू झन बेटा रहिस ।एक ठन कोरा म् ही नही रहिस ,एक ठन बड़े हो के पानी मे डूब गे, एक ठन बेटी अउ रहीस ,थोड़कन बड़का हो के बीमारी में खत्म हो गे ।

उनकी बात सुनकर मेरी भी आँख भर आयी ।फिर मैंने थोड़ा सम्हलते हुए पूछा -बेटी दामाद कहाँ रहिथें ?

थोड़ी गहरी सांस लिए ।बताते हुए चेहरे में संतोष झलकने लगा ।-बेटी दामाद सँगे में रहिथें । वुहुमन बहरी बेचथे ।अभी बेचेबर नागपुर गे हे।

वातावरण को हल्का करते हुए मैने पूछा -तुम्हर मन के उमर कतका होंगे हे ।वैसे तो देखने मे 65-70 के लग रहे थे ।

बुजुर्ग – 80 बरस ।

ये 80 बरस के हे ,तो तै के बरस के हस दाई?

महू वइसने हव 70-80 बरीस के ।

मैंने कहा -80 बरस के तो नई दिखव।

दोनों हँसने लगे ।फिर बोली ये ह 70 बरीस के हे अउ मैं 65-67 बरीस के हवव।

अइसने घूम घूम के दोनों झीन बेचथन ।

केठन बेच डरे ।

40 ठन रखे रहेन । 20 ठक मैं ,20 ठक ये ।20 ठक बेचा गे हे ।16 मोर मेर अउ 4ठक ओखर मेर बाचे हे ।

बात करते करते दोनों का गठ्ठर बन्ध गया था ।

दोनों सन्तोष की गहरी सांस लिए और बहरी का गठ्ठर सिर पर रख आगे निकल चले ।

इस उम्र में इतनी मेहनत ,सिर पर बोझ रखकर दूर-दूर तक पैदल चलना । कितनी देर में पहुँच पाएंगे ,ये स्टेशन तक ।मेरे घर से स्टेशन लगभग 10 किलोमीटर दूर है ।मैं अभी 55 की भी नही हुई हूं और मेरे लिए 1 किलोमीटर चलना ,वह भी बिना किसी भार के , बहुत दुश्वार लगता है । ये प्रतिदिन कितना चलते है ?इतनी कड़ी मेहनत पर चेहरे पर कोई शिकन नही कोई शिकायत नही ।परम संतोष । दोनों में प्रगाढ़ प्रेम ।

उन्हें जाते हुए मैं देर तक देखती रही जब तक आँख से ओझल न हो गए ।

आज मेरी करवा-चौथ मन गयी ।

समझ आ गया स्वस्थ रहना है तो शारीरिक श्रम जरूरी है ।धन से सुख नही मिलता।

# सुख विश्वास और मेहनत में है #।